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29 January 2020

5396 - 5400 जिन्दगी किताब तनाव तोहमत गिले शिकवे लहर वक्त शायरी


5396
जिन्दगीको कभी तो,
खुला छोड़ दो जीनेके लिए...
बहुत सम्भालके रखी चीज़,
वक्त पर नहीं मिलती...

5397
यूँ ना छोड़ जिंदगीकी,
किताबको खुला...
बेवक्तकी हवा ना जाने,
कौनसा पन्ना पलट दे........

5398
जिंदगी वक्तके बहावमें हैं,
यहां हर आदमी तनावमें हैं...
हमने लगा दी पानी पर तोहमत,
यह नहीं देखा कि छेद नावमें हैं...!

5399
जिंदगी तुझसे हर कदम पर,
समझोता क्यों किया जाएँ...
शौक जीनेका हैं मगर इतना भी नहीं कि,
मर मर करकेजिया जाएँ...

5400
हर वक्त जिदंगीसे,
गिले-शिकवे ठीक नही...
कभी तो छोड़ दीजिए,
कश्तियोको लहरोंके सहारे...!