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19 August 2018

3186 - 3190 जिन्दगी मोहब्बत इश्क तारीफ अजनबी रिश्ते महसूस इंतेहा ख्वाहिश नफ़रत दर्द तसल्ली शायरी


3186
तुमको देखा तो,
मोहब्बत भी समझ आई;
वरना इस शब्दकी,
तारीफ ही सुना करते थे ।।

3187
हमें कहां मालूम था, 
इश्क होता क्या हैं... 
बस एक तुम मिले और,
जिन्दगी मोहब्बत बन गई...!

3188
हम ना अजनबी हैं ना पराये हैं,
आप और हम एक रिश्तेके साये हैं,
जब जी चाहे महसूस कर लीजिएगा,
हम तो आपकी मुस्कुराहटोंमें समाये हैं...!

3189
कम्बख्त बेइंतेहा इश्क़की,
ख्वाहिश तो नहीं तुझसे सनम...
तू नफ़रत ही कर मुझसे,
जहरीली ही सही...
तेरी नजरे मेरा दीदार तो करेगी...!

3190
दर्दका सबब,
बढ़ जाता हैं और भी;
जब आपके होते हुए भी,
गैर हमें तसल्ली देते हैं.......