9961
क़हने क़ो तो,
इस शहरमें क़ुछ नहीं बदला...
पर ये बातभी उतनी ही सही हैं,
मौसम अब उतने सुहाने नहीं बनते...
9962
यूँ तो हर शाम,
उम्मीदोंमें गुज़र ज़ाती थी...
आज़ क़ुछ बात हैं,
ज़ो शामपें रोना आया...
9963
ढलती शाम और,
भागती ज़िन्दगीक़े बीच,
ये तुमसे बेवज़हक़ी बातें,
सुनो यहीं इश्क़ हैं......!!!
9964
बारिशमें चलनेसे,
एक़ बात याद आई...
इंसान ज़ितना संभलके क़दम,
बारिशमें रखता हैं l
उतना संभल क़र ज़िन्दगीमें,
रखे तो गलती क़ी,
गुन्ज़ाईश ही न हो ll
9965
बारिशमें चलनेसे,
एक़ बात याद आती हैं...
फ़िसलनेके डरसे,
वो हाथ थाम लेता था...!!!
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