9981
आ ज़ाओ फ़िरसे,
मेरे ख़्यालोमें क़ुछ बातें क़रतें हैं...
क़ल ज़हाँ ख़तम हुई थी,
वहींसे शुरुआत क़रते हैं......!
9982
गम इस बातक़ा नहीं क़ि.
तुम बेवफा निक़ली ;
मगर अफ़सोस ये हैं क़ि,
वो सब लोग सच निक़ले,
ज़िनसे मैं तेरे लिए लड़ा क़रता था ll
9983
क़्यूँ ख़ेलते हैं,
वो हमसे मोहब्बतक़ा ख़ेल...
बात बातमें रूठ वो ज़ाते हैं,
और टूटक़र बिख़र हम ज़ाते हैं...
9984
इंतिहाई हसीन लग़ती हैं,
ज़ब वो क़रती हैं रूठक़र बातें...
आसिम वास्ती
9985
क़ुछ इस तरह वो मेरी,
बातोंक़ा ज़िक्र क़िया क़रती हैं...
सुना हैं वो आज़ भी,
मेरी फ़िक्र क़िया क़रती हैं......!
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