1861
काश कोई तो पैमाना होता,
मोहब्बतको नापनेका,
तो हम भी शानसे आते,
तेरे सामने सबूतके साथ !
1862
मेरे दर्दका मरहम न बन सको कोई बात नहीं,
मगर मेरे ज़ख़्मोंका नमक न बन जाना कभी,
मेरे साथ न चल सको तो कोई बात नहीं,
मगर मेरे पैरोंका नश्तर न बन जाना कभी ।।
1863
हक़ीक़त जिंदगीकी,
ठीकसे जब जान जाओगे,
ख़ुशीमें रो पड़ोगे और,
ग़मोमें मुस्कुराओगे...!
1864
नींदमें भी गिरने लगते हैं...
मेरी आँखसे आँसू...,
जब भी वो ख्वाबोंमें,
मेरा
हाथ छोड़ देते हैं.......
1865
फैलने दो काजल,
ज़रा आँखोंसे...
ज़िंदगीमें हर चीज़,
सिमटी हुई अच्छी नहीं लगती...।