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5 October 2017

1806 - 1810 दिल दुनियाँ मोहब्बत पढाई बेईमान शराफ़त महफूज किस्सा जन्म कहानी यक़ीन खत्म लापता दीदार शायरी


1806
वो तब भी थी, अब भी हैं,
और हमेशा रहेगी...
"ये मोहब्बत हैं...
पढाई नहीं जो पूरी हो जाऐ."

1807
किसी औरके दीदारके लिए,
उठती नहीं ये आँखे,
बेईमान आँखोंमें थोड़ीसी,
शराफ़त आज भी हैं ...

1808
कहते हैं दिलसे ज्यादा महफूज जगह,
नहीं दुनियाँमें और कोई.......
फिरभी ना जाने क्यों सबसे ज्यादा,
यहींसे लोग लापता होते हैं...!!!

1809
अगर तुम्हे पा लेते तो...
किस्सा इसी जन्ममें खत्म हो जाता;
तुम्हे खोया हैं...
तो यक़ीनन कहानी लम्बी चलेगी.......

1810
लफ्ज़ोसे होता नहीं,
इज़हार हमसे प्यारका,
बस मेरी आँखोंमें,
देखकर… खुदको पहचान लो !