7081
दरवेश इस उम्मीदमें था के,
कोई आँखें पढ़ लेगा...
भूल बैठा के अब ये,
ज़बान समझाता कौन हैं...?
7082बरखाकी स्याह रातमें,उम्मीदकी तरह;निर्भीक जुगनुओंका,चमकनाभी देखिये ll
7083
यहाँ रोटी नहीं,
उम्मीद सबको जिंदा रखती हैं l
जो सड़कोंपर भी सोते हैं,
सिरहाने ख्वाब रखते हैं ll
7084तपती रेतपें दौड़ रहा हैं,दरियाकी उम्मीद लिए...सदियोंसे इन्सानका,अपने आपको छलना जारी हैं...
7085
उम्मीदका लिबास, तार तार ही सही...
पर सी लेना चाहिए l
कौन जाने कब किस्मत माँग ले,
इसको सर छुपानेके लिए...ll