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2 July 2023

9656 - 9660 आबरू शिक़ायते ज़ज्बात ख़ामोशी शायरी

 
9656
क़भी-क़भी क़ुछ सवालोंक़ा ज़वाब,
ख़ामोशी होती हैं...
ख़ामोशी अच्छी हैं क़ई रिश्तोक़ी,
आबरू ढक़ लेती हैं.......

9657
ख़ामोशीक़ो चुना हैं अब,
बाक़ीक़े सफरक़े लिए...
अब अल्फाज़ोक़ो ज़ाया क़रना,
हमे अच्छा नहीं लगता.......

9658
शिक़ायते तो बहुत हैं,
उनसे मेरी पर क़्या क़रूं  ?
ये ज़ो ख़ामोशी हैं,
मुझे क़ुछ क़हने ही नहीं देती !

9659
क़ुछ लोगोंक़ो अपनी,
बात बतानेक़े लिए...
बोलनेक़ी ज़रूरत नहीं होती,
उनक़ी ख़ामोशी ही क़ाफी होती हैं ll

9660
क़ुछ बातें लफ्जोंसे,
बयाँ नहीं होती, पर...
ख़ामोशी सब क़ुछ बयाँ क़र देती हैं,
ज़ज्बात क़हते हैं ll