9871
ज़ी क़ी ज़ी हीं में,
रहीं बात न होने पाई...
हैफ़ क़ि उससे,
मुलाक़ात न होने पाई.......
ख़्वाज़ा मीर
9872
न ज़ी भरक़े देख़ा,
न क़ुछ बात क़ी...
बड़ी आरज़ू थी,
मुलाक़ात क़ी......
बशीर बद्र
9873
मुनहसिर वक़्त-ए-मुक़र्ररपें,
मुलाक़ात हुई...
आज़ ये आपक़ी ज़ानिबसे,
नई बात हुई.......
हसरत मोहानी
9874
क़ैसे क़ह दूँ क़ि,
मुलाक़ात नहीं होती हैं l
रोज़ मिलते हैं मग़र,
बात नहीं होती हैं ll
अज्ञात
9875
ये मुलाक़ात,
मुलाक़ात नहीं होती हैं l
बात होती हैं मगर,
बात नहीं होती हैं ll
हफ़ीज़ ज़ालंधरी