बारहा बात,
ज़ीने मरनेक़ी...
एक़ बिख़रीसी,
आस हो तुम भी...
आलोक़ मिश्रा
7652मर चुक़ीं,सारी उम्मीदें अख्तर...आरजू हैं क़ि,ज़िये ज़ाती हैं.......अख्तर अंसारी
7653
इलाज़-ए-अख़्तर-ए-ना-क़ाम,
क्यूँ नहीं मुमक़िन...?
अगर वो ज़ी नहीं सक़ता तो,
मर तो सक़ता हैं.......
अख़्तर अंसारी
7654क़ी मिरे क़त्लक़े बाद,उसने ज़फ़ासे तौबा...हाए उस ज़ूद-पशीमाँक़ा,पशीमाँ होना.......मिर्ज़ा ग़ालिब
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क़हूँ क़िससे मैं क़े,
क़्या हैं शबे ग़म बुरी बला हैं...
मुझे क़्या बुरा था,
मरना अगर एक़ बार होता...
मिर्ज़ा ग़ालिब