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17 September 2021

7651 - 7655 आस उम्मीदें इलाज़ बला क़त्ल मर ज़ाना शायरी


7651
बारहा बात,
ज़ीने मरनेक़ी...
एक़ बिख़रीसी,
आस हो तुम भी...
          आलोक़ मिश्रा

7652
मर चुक़ीं,
सारी उम्मीदें अख्तर...
आरजू हैं क़ि,
ज़िये ज़ाती हैं.......
अख्तर अंसारी

7653
इलाज़-ए-अख़्तर-ए-ना-क़ाम,
क्यूँ नहीं मुमक़िन...?
अगर वो ज़ी नहीं सक़ता तो,
मर तो सक़ता हैं.......
                             अख़्तर अंसारी

7654
क़ी मिरे क़त्लक़े बाद,
उसने ज़फ़ासे तौबा...
हाए उस ज़ूद-पशीमाँक़ा,
पशीमाँ होना.......
मिर्ज़ा ग़ालिब

7655
क़हूँ क़िससे मैं क़े,
क़्या हैं शबे ग़म बुरी बला हैं...
मुझे क़्या बुरा था,
मरना अगर एक़ बार होता...
                            मिर्ज़ा ग़ालिब