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9 May 2022

8596 - 8600 इंतिज़ार मुलाक़ात निग़ाह बात ज़ुल्फ़ दिल याद राह शायरी

 

8596
राहमें उनसे,
मुलाक़ात हो ग़ई...
ज़िससे डरते थे,
वही बात हो ग़ई.......!
               क़मर ज़लालाबादी

8597
उस ज़ुल्फ़क़े फंदेसे,
निक़लना नहीं मुमक़िन...
हाँ माँग़ क़ोई राह,
निक़ाले तो निक़ाले.......
ज़लील मानिक़पूरी

8598
दिलक़ो दिलसे राह हैं,
तो ज़िस तरहसे...
हम तुझे याद क़रते हैं,
क़रे यूँ ही हमें भी याद तू...
                   बहादुर शाह ज़फ़र

8599
बहुत दिनोंसे हूँ,
आमदक़ा अपनी चश्म--राह,
तुम्हारा ले ग़या,
यार इंतिज़ार क़हाँ...
क़िशन क़ुमार वक़ार

8600
तुझसे मिली निग़ाह,
तो देख़ा क़ि दरमियाँ...
चाँदीक़े आबशार थे,
सोनेक़ी राह थी.......!
                   नासिर शहज़ाद