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10 December 2025

10126 - 10130 इश्क चेहरा पुरानी मिसरे हफ़्ता नज़्में हँस चाँद आकाश चूम बूँद अश़्क शीशे फैल तस्वीर शायरी

 
10126
बरसों बाद दिखा चेहरा,
तो समझे हम;
कैसे इक तस्वीर,
पुरानी होती हैं ll
                                  श्रीयांश काबिज़

10127
अब तो इक मिसरेको लेकर,
हफ़्तों बैठे रहते हैं l
पहले तेरी इक तस्वीरपें,
दो नज़्में हो जाती थीं ll
सिद्धार्थ साज़

10128
घर भरा होता हैं,
पर एक कमी होती हैं...
एक तस्वीर बहुत,
हँसती हुई होती हैं ll
                               ऋषभ शर्मा

10129
उस चाँदको भी इश्क होता होगा,
ज़ब मैं भी खुले आकाशमें,
उसीको देखकर,
तस्वीर उसकी चूमता था ll
अंकित यादव

10130
इक बूँद मेरे अश़्ककी,
शीशेपें गिर गई;
वो फैलती गई और,
तेरी तस्वीर बन गई........