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26 February 2019

3971 - 3975 इश्क दर्द फर्क नज़र आँख आँसू याद आँगन मिज़ाज दीवार आईना दिल शायरी


3971
मेरे इश्कमें दर्द नहीं था,
पर दिल मेरा बेदर्द नहीं था;
होती थी मेरी आँखोंसे नीरकी बरसात,
पर उनके लिए आँसू और पानीमें फर्क नहीं था...

3972
आज एक ज़माने बाद,
उनको हमारी याद आयी;
दिल खुश तो हुआ लेकिन,
फिर भी आँखें भर आयी...!

3973
आँगनमें होती तो हम गिरा भी देते,
कमबख़्त;
कुछ लोगोंने दीवारें...
दिलमें उठा रक्खी हैं.......!

3974
अगर मैं भी मिज़ाजसे,
पत्थर होता...
या तो खुदा होता...
या तेरा दिल होता.......!

3975
आपसे दूर भला हम कैसे रह पाते;
दिलसे आपको कैसे भुला पाते;
काश कि आप इस दिलके अलावा,
आईनेमें भी रहते...
देखते जब आईना खुदको देखनेको...
तो वहाँ भी आप ही नज़र आते.......!