3971
मेरे इश्कमें
दर्द नहीं था,
पर दिल मेरा
बेदर्द नहीं
था;
होती थी मेरी
आँखोंसे नीरकी बरसात,
पर उनके लिए आँसू और पानीमें फर्क नहीं
था...
3972
आज एक ज़माने
बाद,
उनको हमारी
याद आयी;
दिल खुश तो
हुआ लेकिन,
फिर
भी आँखें भर
आयी...!
3973
आँगनमें होती
तो हम गिरा
भी देते,
कमबख़्त;
कुछ लोगोंने दीवारें...
दिलमें उठा
रक्खी हैं.......!
3974
अगर मैं भी
मिज़ाजसे,
पत्थर होता...
या तो खुदा
होता...
या तेरा दिल
होता.......!
3975
आपसे दूर भला
हम कैसे रह
पाते;
दिलसे आपको
कैसे भुला पाते;
काश कि आप
इस दिलके अलावा,
आईनेमें
भी रहते...
देखते जब आईना
खुदको देखनेको...
तो वहाँ
भी आप ही
नज़र आते.......!