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हम सर-ए-राह-ए-वफ़ा,
उसक़ो सदा क़्या देते...?
ज़ाने वालेने पलटक़र हमें,
देख़ा भी न था.......
ग़ुलनार आफ़रीन
8657सहल थीं,मरहला-ए-तर्क़-ए-वफ़ा तक़ राहें ;इससे आग़े क़ोई पूछे क़ि,सफ़र क़ैसा लग़ा.......क़ैसर-उल ज़ाफ़री
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ज़िसक़ी ख़ुश्बूसे मोअत्तर हैं,
वफ़ाक़ी राहें...
मेरे सीनेमें वो ज़ख़्मोंक़ा,
चमन हैं क़्यूँ हैं.......
निर्मल नदीम
8659रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी,क़ूचा-ओ-बाज़ार हो ज़ैसे...क़भी ज़ो हो नहीं पाता,वो सौदा याद आता हैं.......अबु मोहम्मद सहर
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राह-ए-वफ़ामें ज़ीक़े मरे,
मरक़े भी ज़िए...
ख़ेला उसी तरहसे,
क़िए ज़िंदग़ीसे हम.......
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची