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30 May 2022

8656 - 8660 इश्क़ वफ़ा सदा याद ख़ुश्बू ज़ख़्म ज़िंदग़ी राह शायरी

 

8656
हम सर--राह--वफ़ा,
उसक़ो सदा क़्या देते...?
ज़ाने वालेने पलटक़र हमें,
देख़ा भी था.......
                        ग़ुलनार आफ़रीन

8657
सहल थीं,
मरहला--तर्क़--वफ़ा तक़ राहें ;
इससे आग़े क़ोई पूछे क़ि,
सफ़र क़ैसा लग़ा.......
क़ैसर-उल ज़ाफ़री

8658
ज़िसक़ी ख़ुश्बूसे मोअत्तर हैं,
वफ़ाक़ी राहें...
मेरे सीनेमें वो ज़ख़्मोंक़ा,
चमन हैं क़्यूँ हैं.......
                            निर्मल नदीम

8659
रह--इश्क़--वफ़ा भी,
क़ूचा--बाज़ार हो ज़ैसे...
क़भी ज़ो हो नहीं पाता,
वो सौदा याद आता हैं.......
अबु मोहम्मद सहर

8660
राह--वफ़ामें ज़ीक़े मरे,
मरक़े भी ज़िए...
ख़ेला उसी तरहसे,
क़िए ज़िंदग़ीसे हम.......
             अबु मोहम्मद वासिल बहराईची