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23 June 2019

4396 - 4400 इश्क़ ज़िंदगी लाज़वाबलब जुर्रत लफ्ज़ ज़िक्र शोर बवाल ख़ामोशी शायरी


4396
तेरी ख़ामोशी अगर,
तेरी मज़बूरी हैं...
तो रेहने दे,
इश्क़ कोनसा जरुरी हैं...

4397
फिर लबोंने जुर्रतकी,
कुछ कहनेकी...
फिर ख़ामोशीने अपना,
रुआब दिखाया.......!

4398
लफ्ज़ तो सारे,
सुने सुनाये हैं...
अब तु मेरी ख़ामोशीमें,
ढुँढ ज़िक्र अपना.......!

4399
कभी कुछ कहकर,
ज़रा शांत करदे इन्हें;
ये ख़ामोशियाँ तेरी,
बहुत शोर करती हैं...!

4400
चुप थे, तो चल रही थी,
ज़िंदगी लाज़वाब...
ख़ामोशियाँ बोलने लगीं,
तो बवाल हो गया...!