4396
तेरी ख़ामोशी अगर,
तेरी
मज़बूरी हैं...
तो रेहने दे,
इश्क़
कोनसा जरुरी
हैं...
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फिर लबोंने
जुर्रतकी,
कुछ
कहनेकी...
फिर ख़ामोशीने अपना,
रुआब दिखाया.......!
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लफ्ज़ तो सारे,
सुने सुनाये हैं...
अब तु मेरी
ख़ामोशीमें,
ढुँढ
ज़िक्र अपना.......!
4399
कभी कुछ कहकर,
ज़रा शांत करदे
इन्हें;
ये ख़ामोशियाँ तेरी,
बहुत
शोर करती हैं...!
4400
चुप थे, तो
चल रही थी,
ज़िंदगी लाज़वाब...
ख़ामोशियाँ
बोलने लगीं,
तो
बवाल हो गया...!