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24 January 2019

3821 - 3825 इश्क़ अरमान इंतज़ार रिश्वत आईना चेहरा दर्द ज़िद चुनाव दिल्लगी मज़ा दिल शायरी


3821
यूँ ही भटकते रहते हैं,
अरमान तुझसे मिलनेके;
ये दिल ठहरता हैं,
तेरा इंतज़ार रुकता हैं

3822
आईना आज फिरसे ,
रिश्वत लेता पकड़ा गया;
दिलमें दर्द था और,
चेहरा हँसता हुआ पकड़ा गया !

3823
तेरी ज़िदसे तंग होकर,
इस्तीफा देने चला हैं ये दिल;
कोई इसे समझाओ की इश्क़में,
फिरसे चुनाव नहीं होते...

3824
दर्द भी दिलके साथ,
दिल्लगी करने लगा;
जुदा दिलसे हुआ और,
गिरने आँखसे लगा...

3825
तेरे श्क़का कैदी बननेका,
अलग ही मज़ा हैं,
छूटनेको दिल नहीं करता,
और उलझनेमें मज़ा आता हैं...