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2 July 2018

2951 - 2955 इश्क़ मोहब्बत मुकर्रर अदालत गवाह महफ़िल मुक़म्मल ऐतबार इंतज़ार यकीन चर्चे मुकाम हासिल नाम शायरी


2951
तेरी हार तो मुकर्रर हैं,
अदालते-श्क़में;
बस दिल हैं मेरा जो,
गवाही नहीं देता.......!

2952
लो हम गए हैं,
महफ़िल दीवानोकी सजाने;
अब वो आये जिसे,
बात इश्क़की मुक़म्मल करनी हो...

2953
मौतपर भी हैं यकीन,
उनपर भी हैं ऐतबार...
देखते हैं, पहले कौन आता हैं,
दोनोंका हैं इंतज़ार.......!

2954
मुकाम हासिल हमने,
कुछ यूँ किया गालिब...
कि तुम्हारी जीतसे ज्यादा, 
हमारी हारके चर्चे हैं...!

2955
मुस्कुरा जाता हूँ !
अक्सर गुस्सेमें भी,
तेरा नाम सुनकर...
तेरे नामसे इतनी मोहब्बत हैं;
तो सोच...
तुझसे कितनी होगी.......!