उम्रभर मिलने नहीं देती हैं,
अब तो रंज़िशें...
वक़्त हमसे रूठ ज़ानेक़ी,
वक़्त हमसे रूठ ज़ानेक़ी,
अदातक़ ले ग़या ll
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मिटानेकी कोशिश,
तुमने भी की, हमने भी की...
हमने फासला और,
तुमने
हमारा वजूद...
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राख होता हुआ
वजूद,
मुझसे थककर
सवाल करता हैं;
मुहब्बत
करना तेरे लिए,
इतना ही जरुरी
था क्या...?
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बहुत शौक था
मुझे,
सबको जोडकर
रखनेका;
होश तब आया
जब,
खुदके
वजूदके टुकडे
हो गये...
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कभी शब्दोमें तलाश,
न करना वजूद मेरा;
मैं उतना लिख नही पाता,
जितना मेहसूस करता हूँ...!