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18 April 2019

4146 - 4150 उम्र मुहब्बत मेहसूस वजूद नुक़्स कोशिश फासला सवाल शौक होश तलाश शायरी


4146
उम्र जाया कर दी,
औरोंके वजूदमें नुक़्स निकालते निकालते...
इतना खुदको तराशते,
तो खुदा हो जाते.......!

4147
मिटानेकी कोशिश,
तुमने भी की, हमने भी की...
हमने फासला और,
तुमने हमारा वजूद...

4148
राख होता हुआ वजूद,
मुझसे थककर सवाल करता हैं;
मुहब्बत करना तेरे लिए,
इतना ही जरुरी था क्या...?

4149
बहुत शौक था मुझे,
सबको जोडकर रखनेका;
होश तब आया जब,
खुदके वजूदके टुकडे हो गये...

4150
कभी शब्दोमें तलाश,
करना जू मेरा;
मैं उतना लिख नही पाता,
जितना मेहसूस करता हूँ...!