उम्रभर देख़ा क़िए,
मरनेक़ी राह...
मर ग़ए पर देख़िए,
दिख़लाएँ क़्या.......
मिर्ज़ा ग़ालिब
9052हंग़ामा-ए-हयातसे,लेना तो क़ुछ नहीं...हाँ देख़ते चलो क़ि,तमाशा हैं राहक़ा...नातिक़ ग़ुलावठी
9053
वो अंधी राहमें,
बीनाइयाँ बिछाता रहा...
बदनपें ज़ख़्म लिए और,
लबोंपें दीन लिए.......
नुसरत ग़्वालियारी
9054अँधियारेक़ी सारी राहें,भेदोंक़े जंग़लक़ी,ज़ानिब ज़ाती हैं llसलीमुर्रहमान
9055
क़ितनी तन्हा थीं,
अक़्लक़ी राहें...
क़ोई भी था न,
चारा-ग़रक़े सिवा...
सूफ़ी तबस्सुम