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19 December 2016

854 उलझी शाम घर समंदर तूफ़ान ज़िद्द साहिल शायरी


854

साहिल, Shore

उलझी शामको पानेकी ज़िद्द न करो;
जो ना हो अपना उसे अपनानेकी ज़िद्द न करो;
इस समंदरमें तूफ़ान बहुत आते हैं;
इसके साहिलपर घर बनानेकी ज़िद्द न करो।

Don't insist on getting a complicated evening;
Don't insist on adopting something that is not yours;
There are many storms in this sea;
Don't insist on building a house on its shore.