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15 August 2017

1661 - 1665 दिल जान हद हकदार काँच चकनाचूर महसूस बेचैनियाँ इल्तिजा हुक्म आसमान शायरी


1661
सिर्फ दिलका हकदार,
बनाया था तुम्हें...
हद हो गई,
तुमने तो जान भी ले ली.......

1662
टूटे हुए काँचकी तरह...
चकनाचूर हो गए...
किसीको लग न जाए...
इसलिए सबसे दूर हो गए...

1663
बताओ फ़िर उसे,
क्यूँ नहीं महसूस होती बेचैनियाँ मेरी,
जो अक्सर कहतें हैं...
"बहुत अच्छेसे जानती हूँ मैं तुम्हें..."

1664
जो हुक्म देता हैं,
वो इल्तिजा भी करता हैं,
ये आसमान कहींपर,
झुका भी करता हैं.......

1665
अब किस्मत ही,
मिला दे, तो मिला दे,
वरना हम तो बिछड़ गए हैं,
तूफ़ानमें परिंदोंकी तरह...