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26 June 2020

6081 - 6085 कैद चमन आशियाँ आसमाँ ख़्वाहिश हवस गम रंग कफस नशेमन शायरी


6081
बहुत  हैं,
कैदे-जिन्दगीमें मुतमइन होना...
चमन भी इक मुसीबत था,
कफस भी इक मुसीबत हैं.......
                    सीमाब अकबराबादी

6082
अगर खो गया इक निशेमन तो क्या गम,
मुकामाते–आहो–फुगाँ और भी हैं;
कनाअत न कर आलमे-रंगो–बूपर,
चमन और भी आशियाँ और भी हैं;
तू शाही हैं परवाज हैं काम तेरा,
तेरे सामने आसमाँ और भी हैं ll
मोहम्मद इकबाल

6083
बे-सबाती चमन--दहरकी हैं,
जिनपे खुली...
हवस--रंग वो,
ख़्वाहिश--बू करते हैं...
                                  ऐश देहलवी

6084
वह शाखे-गुलपें हो,
या किसीकी मैयतपर...
चमनके फूल तो आदी हैं,
मुस्कुरानेके लिये.......!

6085
चमनमें इख़्तिलात--रंग--बूसे,
बात बनती हैं...
हम ही हम हैं, तो क्या हम हैं...
तुम ही तुम हो, तो क्या तुम हो...
                                   सरशार सैलानी