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16 October 2019

4886 - 4890 कोशिशें अदाएं ज़ालिम वक़्त दुआ काफिला उलझन साँस बात मुकद्दर ज़िन्दगी शायरी


4886
मेरी सब कोशिशें नाकाम थी,
उनको मनाने कि...
कहाँ सीखीं है ज़ालिमने,
अदाएं रूठ जाने कि...!

4887
मत कर मुझे भूलनेकी,
नाकाम कोशिशें...
तेरा यूँ हारना,
मुझे मंजूर नहीं है...

4888
ना डरा मुझे वक़्त,
नाकाम होगी तेरी हर कोशिशें;
ज़िन्दगीके मैदानमें खड़ा हूँ,
दुआओंका काफिला लेकर...

4889
यूँ तो उलझे है,
सभी अपनी उलझनोंमें;
पर सुलझाने की कोशिश,
हमेशा होनी चाहिए...

4890
तू जिंदगीको जी,
उसे समझनेकी कोशिश ना कर।
चलते वक़्तके साथ तू भी चल,
वक़्तको बदलनेकी कोशिश ना कर।
दिल खोलकर साँस ले,
अंदर ही अंदर घुटनेकी कोशिश ना कर।
कुछ बाते मुकद्दरपे छोड़ दे,
सब कुछ खुद सुलझानेकी कोशिश ना कर।