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11 October 2017

1831 - 1835 दिल मोहोब्बत जिंदगी मुकाम खुशी लम्हा साँस इजाज़त ख्वाब आँख इजहार मुश्किल एहसास शायरी


1831
तुम्हे रखा हैं,
दिलके उस मुकामपर...
जहाँ मैं अपनी साँसोंको भी,
जानेकी इजाज़त नहीं देता.......

1832
ख्वाब आँखोंसे गए और,
नींद रातोंसे गयी,
वो जिंदगीसे गए और,
जिंदगी हाथोंसे गयी...

1833
मानते हैं सारा जहाँ तेरे साथ होगा;
खुशीका हर लम्हा तेरे पास होगा;
जिस दिन टूट जाएँगी साँसे हमारी;
उस दिन तुझे हमारी कमीका एहसास होगा।

1834
बडी मुश्किलमें हूँ कैसे इजहार करू,
वो तो  खुशबु  हैं उसे  कैसे  गिरफ्तार करू...
उसकी मोहोब्बतपर मेरा हक नहीं,
लेकिन दिल कहता हैं,
आखरी साँस तक उसका इन्तजार करूं...

1835
उसकी आँखोंमें नज़र आता हैं,
सारा जहाँ मुझको . . .
अफ़सोस कि उन आँखोंमें,
कभी खुदको नहीं देखा . . . !