6786
तू गम दे या खुशी,
तुझे इख्तियार हैं;
हम बेनियाज हो गये,
दामन पसारकर...
अनवर मिर्जापुरी
6787
चले जाइए मुझसे,
दामन बचाकर...
तसव्वुरसे
बचकर,
कहाँ जाइएगा.......!
6788
तू हैं बहार तो,
दामन मिरा हो क्यूँ ख़ाली...
इसे भी भर दे गुलोंसे,
तुझे ख़ुदाकी क़सम.......
हादी मछलीशहरी
6789
नज़र बचाके गुज़र जाएँ,
मुझसे वो लेकिन;
मेरे ख़यालसे,
मुझसे वो लेकिन;
मेरे ख़यालसे,
दामन बचा नहीं सकते...ll
6790
न उसके दामनसे मैं ही उलझा,
न मेरे दामनसे ये ही अटकी,
हवासे मेरा बिगाड़ क्या हैं,
जो शम-ए-तुर्बत बुझा रही हैं ll
मुज़्तर ख़ैराबादी