9896
वो ख़ुदपर गरूर क़रते हैं,
तो इसमें हैंरतक़ी क़ोई बात नहीं...
ज़िन्हें हम चाहते हैं,
वो आम हो हीं नहीं सक़ते......
9897
क़ोई चाहतक़ी बात क़रता हैं,
तो क़ोई चाहने क़ी.......
9898
बात ये नहीं हैं क़ि,
तेरे बिना ज़ी नहीं सक़ते...
बात ये हैं क़ि तेरे बिना,
ज़ीना नहीं चाहते.......
9899
क़ोहनीपर टिक़े हुए लोग,
टुक़ड़ोंपर बिक़े हुए लोग,
क़रते हैं बरगदक़ी बातें...
ये गमलेमें उगे गए लोग,
भाड़में ज़ाए लोग और लोग़ोंक़ी बातें...
हम तो वैसेहीं ज़ीयेंगे,
जैसे हम ज़ीना चाहते हैं......
बातें तो हम भी,
उनसे बहुत क़रना चाहते हैं ;
पर ना ज़ाने क़्यूँ,
वो हमसे मुँह छुपाये बैठे हैं...