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22 September 2018

3311 - 3315 गलती डर रुठ सफर नींद तारीफ़ फ़िज़ूल ख़ुशबू बात ताल्लुक शायरी


3311
कई बार बिना गलतीके भी,
गलती मान लेते हैं हम;
क्योंकि डर लगता हैं कहीं,
कोई अपना हमसे रुठ ना जाए !

3312
इस सफरमें,
नींद ऐसी खो गई...
हम तो सोये नही,
रात ही थक कर सो गई...!

3313
'' घुटनोंपर टिके लोग,
चंद सिक्कोंपर बिके लोग !
बरगदपर उठाते हैं उंगलियाँ,
गमलोंमें उगे लोग...!!! ''

3314
तारीफ़ अपने आपकी,
करना फ़िज़ूल हैं;
ख़ुशबू तो ख़ुद ही बता देती हैं,
कौनसा फ़ूल हैं.......

3315
यूँ ही एक छोटीसी बातपें,
ताल्लुकात पुराने बिगड़ गये...
मुद्दा ये था कि सही "क्याहैं,
और वो सही "कौन" पर उलझ गये...