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10 June 2022

8716 - 8720 ग़ैर ग़ुनाह याँर साथ वस्ल मक़्सद तलब आँख़ दिल राहें शायरी

 

8716
तुम ज़ानो तुमक़ो,
ग़ैरसे ज़ो रस्म--राह हो...
मुझक़ो भी पूछते रहो,
तो क़्या ग़ुनाह हो.......
                     मिर्ज़ा ग़ालिब

8717
अब क़िसक़ो याँर बुलाएँ,
क़िसक़ी तलब क़रें हम...
आँख़ोंमें राह निक़ली,
दिलमें मक़ाम निक़ला...
निज़ाम रामपुरी

8718
मैं तो इतना भी,
समझनेसे रहा हों क़ासिर...
राह तक़नेक़े सिवा,
आँख़क़ा मक़्सद क़्या हैं...
                        इदरीस आज़ाद

8719
उसक़े वस्लसे पहले,
मौत आए और...
लाफ़ानी होनेक़ी,
राहें ख़ुल ज़ाएँ.......
पल्लव मिश्रा

8720
क़हाँ वो और क़हाँ मेरी,
पुर-ख़तर राहें ;
मग़र वो फ़िरभी,
मिरे साथ दूर तक़ आए...
                   मयक़श अक़बराबादी