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12 October 2017

1836 - 1840 प्यार मोहब्बत जमाने जिंदगी लम्हे साथ वक्त हवाला रात बात बरसात शायरी


1836
कुछ लम्हे गुजारे,
तूने मेरे साथ,
तुम उन्हें वक्त कहते हो,
और हम उन्हें जिंदगी कहते हैं !

1837
हमने गुज़रे हुए लम्होंका,
हवाला जो दिया...
हँसके वो कहने लगे,
रात गई बात गई . . .

1838
अगर मेरी चाहतोंके मुताबिक,
जमानेमें हर बात होती,
तो बस मैं होता वो होती,
और सारी रात बरसात होती...!

1839
तुम जिस रिश्तेसे,
आना चाहो, आ जाना,
मेरे चारो तरफ,
मोहब्बत ही मोहब्बत हैं...

1840
सुखे पत्तेसे प्यार कर लेंगे,
तुम्हारा ऐतबार कर लेंगे, 
तुम ये तो कहो की हम तुम्हारे हैं,
हम जिन्दगीभर इन्तजार कर लेंगे...