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21 March 2022

8396 - 8400 चाहत रौनक़ ज़िस्म ज़नाज़ा क़िरदार धुआँ रूह शायरी

 

8396
ये चाहतें, ये रौनक़ें,
पाबन्द हैं मेरे ज़ीनेतक़...
बिना रूहक़े नहीं रख़ते,
घरवाले भी ज़िस्मक़ो.......

8397
मौतक़ी शह देक़र तुमने,
समझा अब तो मात हुई...
मैंने ज़िस्मक़ा ख़ोल उतारक़े,
सौंप दिया और रूह बचा ली...!
                  ग़ुलज़ार

8398
बदनसे रूह ज़ाती हैं तो,
बिछती हैं सफ़-ए-मातम...
मग़र क़िरदार मर ज़ाये तो,
क़्यूँ मातम नहीं होता.......?

8399
रूह घबराई हुई फ़िरती हैं,
मेरी लाशपर...
क़्या ज़नाज़ेपर मेरे ख़तक़ा,
ज़वाब आनेक़ो हैं.......
फ़ानी बदायुनी

8400
क़ोई मेरी रूहक़ो,
ज़लाक़र यूँ चला ग़या हैं...
देख़ो ना धुआँ धुआँ सी हो ग़ई हैं,
मेरी ज़िंदग़ी.......