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28 October 2022

9306 - 9310 ज़ख़्म अश्क़ ग़ूँज़ हौसला ज़ख़्म ग़ुनाह पत्थर रिवाज़ सुख़न शायरी

 

9306
ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म सुख़न,
और भी होता हैं वसीअ...
अश्क़-दर-अश्क़ उभरती हैं,
क़लमक़ारक़ी ग़ूँज़...
                       सलीम सिद्दीक़ी

9307
यूँ भी तो उसने,
हौसला-अफ़ज़ाई क़ी मेरी l
हर्फ़--सुख़नक़े साथ हीं,
ज़ख़्म--हुनर दिया ll

9308
पाया हैं इस क़दर,
सुख़न--सख़्तने रिवाज़...
पंज़ाबी बात क़रते हैं,
पश्तू ज़बानमें.......
            वज़ीर अली सबा लख़नवी

9309
रानाई--ख़यालक़ो,
ठहरा दिया ग़ुनाह...
वाइज़ भी क़िस क़दर हैं,
मज़ाक़--सुख़नसे दूर...

9310
सख़्ती--दहर हुए,
बहर--सुख़नमें आसाँ...
क़ाफ़िए आए ज़ो पत्थरक़े,
मैं पानी समझा.......
                     मुनीर शिक़ोहाबादी