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14 January 2020

5331 - 5335 ज़िंदगी मौहब्बत नसीब चाह नशा याद गुस्ताखियाँ अजीब पल नफ़रत उम्र अकेले शायरी


5331
कुछ कर गुजरनेकी चाहमें,
कहाँ-कहाँ से गुजरे...
अकेलेही नजर आये हम,
जहाँ-जहाँसे गुजरे.......

5332
एक उम्र गुस्ताखियोंके,
लिये भी नसीब हो;
ये ज़िंदगी तो बस,
अदबमें ही गुजर गई...

5333
छाया हैं नशा,
उनकी यादोंका...
रात जरा,
थमके गुजर...!

5334
एक नफ़रत हैं,
जो लोग पलमें समझ जाते हैं;
और एक मौहब्बत हैं,
जिसको समझनेमें बरसों गुजर जाते हैं...

5335
बड़े अजीब अकेलेपनसे गुजरते हैं,
ये खण्डहर भी.......
देखने तो बहुत आते हैं,
रहता कोई नही.......!