4531
जहाँ भी ज़िक्र
हुआ,
सुकूनका...
वहीं तेरी बाहाेंकी तलब,
लग
जाती हैं.......!
4532
तलब उठती हैं बार बार,
तुमसे
बात करनेकी...
धीरे धीरे ना
जाने कब,
तुम
मेरी लत बन
गए...!
4533
अब मैं समझा,
तेरे रुखसारपे
तिलका मतलब...
दौलत-ए-हुस्नपे,
दरबान बैठा
रखा हैं.......!
4534
कोई सुलह करा
दे,
ज़िन्दगीकी
उलझनोंसे...
बड़ी तलब लगी हैं की,
चैनकी नींद सो
जाऊं...!
4535
सुलह करा दे,
ज़िन्दगीकी उलझनोंसे...
बड़ी तलब लगी हैं,
आज मुस्कुरानेकी...