6906
अपनी आँख़ोंके अश्क़ बहाकर सोना;
तुम मेरी यादोंका दिया जलाकर सोना;
डर लगता हैं नींद ही छीन ना ले तुझे...
तू रोज़ मेरे ख्वाबोमें आकर सोना.......
6907छलके थे जो कभी,आँख़ोंसे मेरी...अश्क़ वो क्यों,तेरी आँख़ोंसे मिले...
6908
ज़िन्दगी तूने मुझे,
तोहफ़े बड़े अनमोल दिये हैं...
अश्क़ जितने भी थे,
सब नाम मेरे तौल दिये हैं...!
6909ये रोशनी, ये हवा क्या करूँ,मैं ज़मानेकी दुआ क्या करूँ...?मेरी आँख़ोंके अश्क़ रेत हुए,यार दरिया ना हुआ क्या करूँ...?
6910
चैन मिलता था जिसे,
आके पनाहोंमें मेरी...
आज देता हैं वहीं,
अश्क़ निगाहोंमें मेरी.......