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9 February 2017

946 जिंदगी कदम समझौता शौक मरमर शायरी हैं हीं हां में मैं पें याँ आँ हूँ हाँ हें


946
"जिंदगी तुझसे हर कदमपर,
समझौता क्यों किया जाए...
शौक जीनेका हैं मगर,
इतना भी नहीं,
की मरमरके जिया जाए..."