4601
तुम क़ाँटोंकी बात करते
हो,
हमने तो फुलोंसे
भी जख्म पाए
हैं;
तुम गैरोंकी बात करते
हो,
हमने तो अपने
भी आजमाए हैं...
4602
झूठी हँसी ,
जख्म और बढ़ता
गया...
इससे बेहतर था,
खुलकर
रो लिए होते...
4603
जिन्दगी
गुजर रही हैं,
इम्तेहानोंके दौरसे...
एक जख्म भरता
नहीं,
और दूसरा आनेकी
जिद्द करता हैं...
4604
अजनबी शहरमें
किसीने,
पीछेसे पत्थर फेंका
हैं...
जख्म कह रहा
हैं,
जरुर इस
शहरमें कोई
अपना मौजूद हैं...
4605
कहाँ जख्म खोल
बैठा पगले...
ये शहर हैं नमकका.......!