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17 January 2020

5341 - 5345 जिन्दगी ज़माने दुआ महफ़िल काफ़िला मुक़द्दर वक्त शिकवे साथ अकेली अकेला शायरी



5341
दोहरे चरित्रमें,
नहीं जी पाता हूँ;
इसलिए अक्सर,
अकेला नजर आता हूँ...

5342
दुआओँका काफ़िला,
चलता है मेरे साथ...
मुक़द्दरसे कह दो,
अकेला नही हूँ मैं...!

5343
वक्तभी कैसी पहेली दे गया...
उलझने सौ,
जिन्दगी अकेली दे गया...!

5344
महफ़िलसे दूर,
मैं अकेला हो गया...
सूना सूना मेरे लिए,
हर मेला हो गया.......


5345
गीले शिकवे,
क्या करे ज़मानेसे...
अकेला आये थे,
अकेला जाएंगे.......