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24 December 2021

8001 - 8005 जुबां तारिफ ग़लती मिलावट एहसान वक़्त लिबास इल्ज़ाम शायरी

 

8001
जुबां ग़न्दी होनेक़ा,
इल्ज़ाम हैं मुझपर...
ख़ता सिर्फ़ इतनी हैं क़ी,
हम सफ़ाई नहीं देते...

8002
क़म्बख्त हुई क़रामात,
सब हाथोंक़ा क़ाम था...
पर ग़लती वक़्तक़ी बताक़र,
हालातोंपर इल्ज़ाम था...!

8003
ये मिलावटक़ा,
दौर हैं साहब...
यहाँ इल्ज़ाम लग़ायें ज़ाते हैं,
तारिफोंक़े लिबासमें.......!!!

8004
हमारे सर हर इक़,
इल्ज़ाम धर भी सक़ता हैं l
वो मेहरबां हैं,
ये एहसान क़र भी सक़ता हैं ll
शारिब मौरान्वी

8005
चोर-नग़रमें क़ातिल सारे,
सीना ताने फ़िरते हैं...
हम ऐसे सादा-लौहोंपर,
आए हैं इल्ज़ाम बहुत.......
                            हबीब कैफ़ी