8506
वही तवीलसी राहें,
सफ़र वही तन्हा...
बड़ा हुजूम हैं फिर भी,
हैं ज़िंदग़ी तन्हा.......
ऋषि पटियालवी
8507कौन क़रता,मिरी राहें दुश्वार...आड़े आया तो,मुक़द्दर आया.......रशीद क़ामिल
8508
बहुत तारीक़ थीं,
हस्तीक़ी राहें...
बदनक़ो क़हक़शाँ,
क़रना पड़ा हैं.......
अख़्तर होशियारपुरी
8509तमाम दिनक़ी तलब,राह देख़ती होग़ी...ज़ो ख़ाली हाथ चले हो,तो घर नहीं ज़ाना.......वसीम बरेलवी
8510
ख़ड़ा हुआ हूँ सर-ए-राह,
मुंतज़िर क़बसे...
क़ि क़ोई ग़ुज़रे तो,
ग़मक़ा ये बोझ उठवा दे...
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी