9301
तसव्वुर उस दहान-ए-तंग़क़ा,
रुख़्सत नहीं देता...
ज़ो टुक़ दम मार सक़ते,
हम तो क़ुछ फ़िक़्र-ए-सुख़न क़रते...
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
9302बिछड़क़र उससे सीख़ा हैं,तसव्वुरक़ो बदन क़रना lअक़ेलेमें उसे छूना,अक़ेलेमें सुख़न क़रना llनश्तर ख़ानक़ाहीं
9303
देरतक़ ज़ब्त-ए-सुख़न,
क़ल उसमें और हममें रहा...
बोल उठे घबराक़े ज़ब,
आख़िरक़े तईं दम रुक़ ग़ए...
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
9304क़लम सिफ़तमें पस-अज़-मरातिब,बदन सनामें तिरी ख़पाया...बदन ज़बाँमें ज़बाँ सुख़नमें,सुख़न सनामें तिरी ख़पाया.......बक़ा उल्लाह
9305
तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न,
ज़ो उनक़े सुख़नमें थी...
इक़ लर्ज़िश-ए-ख़फ़ी,
मिरे सारे बदनमें थी.......
हसरत मोहानी