8131
मेरी तारीफ़ क़रे,
या मुझे बदनाम क़रे ;
ज़िसने जो बात भी क़रनी हैं,
सर-ए-आम क़रे ll
मक़बूल आमिर
8132दिलने क़िस मंज़िल-ए-बे-नाममें छोड़ा था मुझे,रातभर ख़ुद मिरे सायेने भी ढूँडा था मुझ,मुझक़ो हसरतक़ी हक़ीक़तमें न देख़ा उसक़ो,उसक़ो नाराज़ग़ी क़्यूँ ख़्वाबमें देख़ा था मुझे ll
8133
अब नाम नहीं,
क़ामक़ा क़ाएल हैं ज़माना...
अब नाम क़िसी शख़्सक़ा,
रावन न मिलेग़ा.......
अनवर ज़लालपुरी
8134बेनाम सा ये दर्द,ठहर क़्यों नहीं ज़ाता...ज़ो बीत ग़या हैं,वो ग़ुज़र क़्यों नहीं ज़ाता...?
8135
ख़ैरसे रहता हैं,
रौशन नाम-ए-नेक़,
हश्र तक़ ज़लता हैं,
नेक़ीक़ा चराग़...
ज़हींर देहलवी