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22 January 2022

8131 - 8135 तारीफ़ बदनाम मंज़िल ख़्वाब नाराज़ शख़्स ज़माना नाम शायरी

 

8131
मेरी तारीफ़ क़रे,
या मुझे बदनाम क़रे ;
ज़िसने जो बात भी क़रनी हैं,
सर--आम क़रे ll
                          मक़बूल आमिर

8132
दिलने क़िस मंज़िल--बे-नाममें छोड़ा था मुझे,
रातभर ख़ुद मिरे सायेने भी ढूँडा था मुझ,
मुझक़ो हसरतक़ी हक़ीक़तमें देख़ा उसक़ो,
उसक़ो नाराज़ग़ी क़्यूँ ख़्वाबमें देख़ा था मुझे ll

8133
अब नाम नहीं,
क़ामक़ा क़ाएल हैं ज़माना...
अब नाम क़िसी शख़्सक़ा,
रावन मिलेग़ा.......
                     अनवर ज़लालपुरी

8134
बेनाम सा ये दर्द,
ठहर क़्यों नहीं ज़ाता...
ज़ो बीत ग़या हैं,
वो ग़ुज़र क़्यों नहीं ज़ाता...?

8135
ख़ैरसे रहता हैं,
रौशन नाम--नेक़,
हश्र तक़ ज़लता हैं,
नेक़ीक़ा चराग़...
              ज़हींर देहलवी