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1 August 2019

4551 - 4555 दहशत तस्वीर ख्वाहिश लिबास रिश्ता बात जिंदगी कातिल सादगी फ़िक्र रूह शायरी


4551
रूहमें ज़िसने ये,
दहशतसी मचा रक्ख़ी हैं ;
उसक़ी तस्वीर,
ग़ुमाँभर तो बना सक़ते हैं ll
                            रफ़ीक़ राज़

4552
यूँ झाँको इस कदर,
मेरी रूहके अन्दर...
कुछ ख्वाहिशें मेरी,
वहाँ बे-लिबास रहती हैं...!

4553
काली रातोंको भी,
रंगीन कहा हैं मैंने;
तेरी हर बातपे,
आमीन कहा हैं मैंने...
एक तू ही तो हैं,
हमसाया जिंदगीका मेरी;
वरना यहां तो हर रिश्ता,
मेरी रूहका कातिल हैं...!

4554
ये सोचकर हमने,
ख़ुदको बेरंग रखा हैं...
सुना हैं सादगी ही,
रिश्तोकी रूह होती हैं...!

4555
करूँ क्यों फ़िक्र की,
मौतके बाद जगह कहाँ मिलेगी...
जहाँ होगी महफिल मेरे यारोकी,
मेरी रूह वहाँ मिलेगी.......!