6231
पिला मय आश्कारा हमको,
किसकी साक़िया चोरी...
ख़ुदासे जब नहीं चोरी,
तो फिर बंदेसे क्या चोरी...!
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
6232
ग़र्क़ कर दे
तुझको ज़ाहिद,
तेरी दुनियाको ख़राब...
कमसे कम इतनी
तो,
हर मय-कश
के पैमाने में
हैं...!
जिगर मुरादाबादी
6233
मय-कशीके भी कुछ,
आदाब बरतना सीखो...
हाथमें अपने अगर,
जाम लिया हैं तुमने...!
अहमद
6234
आता हैं जज्बे-दिलको,
यह अंदाजे-मय-कशी...
रिन्दोंमें
रिन्द भी रहें,
दामन भी तर
न हो...
जोश मल्सियानी
6235
लोग लोगोंका खून पीते हैं,
हमने तो सिर्फ मय-कशी की हैं...!
नरेश कुमार शाद