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19 November 2017

1981 - 1985 दिल इश्क जिंदगी आँखें शराब दूरियाँ फ़ासले नज़दीकियाँ उधार चीज़ कफ़न नज़रें कलम आँसु शायरी


1981
पूछा जब उन्होंने,
लिखने लगे कबसे ज़नाब,
कहाँ आँखें आपकी,
लगने लगी जबसे शराब।

1982
" दूरियों " का ग़म नहीं
अगर " फ़ासले " दिलमें न हो।
" नज़दीकियाँ " बेकार हैं,
अगर जगह दिलमें ना हो।

1983
जिंदगीसे कोई चीज़,
उधार नहीं मांगी मैंने ...
कफ़न भी लेने गए तो,
जिंदगी अपनी देकर . . . !

1984
मैं भी हुआ करता था वकील,
इश्क वालोंका कभी.......
नज़रें उससे क्या मिलीं...
आज खुद कटघरेमें हूँ मैं...!!

1985
लिखा तो था तेरे बगैर खुश हूँ...
पर कलमसे पहले आँसु गिर गये।