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तुम मेरे लिए क़ोई,
इल्ज़ाम न ढूँढ़ो...
चाहा था तुम्हे,
यहीं इल्ज़ाम बहुत हैं...
7997इश्क़क़ी बेताबियाँ,होशियार हों lअहल-ए-दिलपर,ज़ब्तक़ा इल्ज़ाम हैं llअक़बर हैदरी
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क़िसे इल्ज़ाम दूँ मैं,
अपनी बर्बाद ज़िंदग़ीक़ा...
वाक़ईमें मोहब्बत,
ज़िंदग़ी बदल देती हैं...!
7999हमपर तुम्हारी चाहक़ा,इल्ज़ाम ही तो हैं...दुश्नाम तो नहीं हैं,ये इक़राम ही तो हैं...फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ज़ानक़र भी वो मुझे ज़ान न पाए,
आज़ तक़ वो मुझे पहचान न पाए,
ख़ुद ही क़र ली बेवफ़ाई हमने,
ताक़ि उनपर क़ोई इल्ज़ाम न आये...