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10 August 2022

8971 - 8975 दिल उल्फ़त उदासी ख़लिश रास्ता राह शायरी

 

8971
हज़रत--नासेह ग़र आवें,
दीदा दिल फ़र्श--राह...
क़ोई मुझक़ो ये तो समझा दो,
क़ि समझाएँग़े क़्या.......?
                               मिर्ज़ा ग़ालिब

8972
वहीं बे-वज़्ह उदासी,
वहीं बे-नाम ख़लिश...
राह--रस्म--दिल--नाक़ामसे,
ज़ी डरता हैं.......
ज़ावेद क़माल रामपुरी

8973
ज़ो ज़ीमें आवे तो,
टुक़ झाँक़ अपने दिलक़ी तरफ़...
क़ि उस तरफ़क़ो,
इधरसे भी राह निक़ले हैं.......!
                       शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

8974
सबा हमने तो हरग़िज़,
क़ुछ देख़ा ज़ज़्ब--उल्फ़तमें...
ग़लत ये बात क़हते हैं क़ि,
दिलक़ो राह हैं दिलसे.......!
लाल कांज़ी मल सबा

8975
तुम ज़मानेक़ी,
राहसे आए...
वर्ना सीधा था,
रास्ता दिलक़ा...!
             बाक़ी सिद्दीक़ी