5986
ज़रुरतें
तो कभी ख़त्म
नहीं होती,
सुकून ढूंढिये...
और वो तो फ़क़ीरोंके,
और वो तो फ़क़ीरोंके,
दरपरही नसीब होता...
5987
चलें चलकर,
सुकूनही
ढूंढ़ लाएँ...
ख़्वाहिशे
तो,
खत्म होनेसे रहीं...
5988
चलो थोड़ा,
सुकूनसे
जिया जाएँ...
जो दिल दुखाते
हैं,
उनसे थोड़ा दूर रहा
जाएँ...
5989
सुकूनकी
बात मत कर,
ए गालिब.......
बचपनवाला
इतवार,
अब नहीं आता...
5990
थक गयी हूँ
हररोज भीड़से,
सुलझते, उलझते;
बस एक सुकूनसा
चाहती हूँ,
कुछ पल सिर्फ,
तुमसे सहेजते सँवरते.......!
भाग्यश्री