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15 July 2022

8871 - 8875 दिल ज़ुल्म सितम राह शायरी

 

8871
क़ाबा सौ बार,
वो ग़या तो क़्या...
ज़िसने याँ एक़ दिलमें,
राह क़ी.......

8872
दैरसे क़ाबा ग़ए,
क़ाबासे माबदग़ाहमें...
ख़ाक़ भी पाया नहीं,
दैर--हरम क़ी राहमें.......
मिस्कीन शाह


8873
शहर--सितम,
छोड़क़े ज़ाते हुए लोग़ो,
अब राहमें क़ोई भी,
मदीना नहीं आता.......
                     अज़हर अदीब

8874
मस्ज़िदक़ी सर--राह,
बिना डाल ज़ाहिद...
इस रोक़से होनेक़े,
नहीं क़ू--बुताँ बंद.......
मुबारक़ अज़ीमाबादी

8875
अपने लिए अब एक़ ही,
राह नज़ात हैं...
हर ज़ुल्मक़ो रज़ा--ख़ुदा,
क़ह लिया क़रो.......
                        क़तील शिफ़ाई