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8 January 2020

5301 - 5305 दिल दर्द जमाने फ़िक्र उम्र हसीन बुराई आँख नशा नाम तमाम शायरी


5301
कौन कैसा हैं,
ये ही फ़िक्र रही तमाम उम्र...
हम कैसे हैं,
ये कभी भूलकरभी नही सोचा...!

5302
तमाम उम्र जिसकी,
उंगलियाँ छू ना सका मैं...
वो चूड़ी वालेको,
अपनी कलाई थमा देती हैं...

5303
हर एक हसीन चेहरेमें गुमान उसका था,
बसा कोई दिलमें ये मकान उसका था...
तमाम दर्द मिट गए मेरे दिलसे लेकिन,
जो मिट सका वो एक नाम उसका था...!

5304
तमाम शराबें पी ली थी,
इस जमानेकी मगर...
तेरी आँखोंमें झाँका तो जाना,
कि ये नशा भी क्या चीज़ हैं...!

5305
सम्भलकर किया करो,
लोगोसे बुराई मेरी...
तुम्हारे तमाम अपने,
मेरे ही मुरीद हैं.......!